झालावाड़ जिले में पर्यटन स्थल
जिला-झालावाड़
गढ़ भवन पैलेस
- इसका निर्माण सन् 1838 में झाला राजा मदनसिंह द्वारा कराया गया था। गढ़ का शीश महल आकर्षक है। इसके एक हिस्से में बने राजाओं के चित्र अभी भी अपने चटखे रंगों के कारण खूबसूरत लगते हैं।
सग्रहालय
- गढ़ भवन पैलेस के मुख्य द्वार के पास ही स्थित है महाराजा भवानी सिंह द्वारा सन् 1915 में स्थापित पुरातत्त्व संग्रहालय। अनेक ऐतिहासिक और दुर्लभ प्रतिमाओं, शिलालेखों, चामुण्डा, षटमुखी सूय नारायण, अर्द्धनारीश्वर, शूकर वराह और त्रिमुखी विष्णु की आकर्षक मूर्तियाँ विशेष रूप से दर्शनीय हैं।
भवानी नाट्यशाला
- नाट्यशाला राज्य में ही नहीं बल्कि देश भर में अनठी है। सन में कला प्रेमी महाराजा भवानी सिंह द्वारा बनवाई गई यह 1921 में कला प्रेमी नाट्यशाला पारसी ऑपेरा शैली की है।
गागरोन का किला
- झालावाड़ शहर से पांच किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक लम्बी दाडी पर स्थित है ‘गागरोन का किला’। इस किले के पास ही चौडे दो बड़ी नदियों-काली सिंध और आहू का संगम होता है। किला बिना किसी नींव के सीधे-चट्टानों पर खड़ा किया गया है। यह दुर्ग में जौहर कुण्ड, अनेक महल, नक्कार खाना, बारूद खाना, टिव औरंगजेब द्वारा निर्मित दरगाह प्रमुख है। प्राकृतिक सौन्दर्य की बलि से यह दुर्ग श्रेष्ठतम माना जाता है। किले के पास ही मिठेशाह की प्रसिद्ध ऐतिहासिक दरगाह है।
रैन बसेरा
- झालावाड़-कोटा सड़क मार्ग पर सात किलोमीटर दूर किशन सागर झील के किनारे लकड़ी से निर्मित एक अत्यन्त सुंदर विश्राम गृह है जो रैन बसेरा के नाम से जाना जाता है। देहरादून के वन शोध संस्थान द्वारा निर्मित इस अनूठे भवन को सन् 1936 में लखनऊ की एक उद्योग प्रदर्शनी में रखा गया था। झालावाड़ के तत्कालीन महाराजा इस भवन को खरीदकर यहाँ से आए और किशन सागर के किनारे इसको स्थापित करवाया।
नवलखा किला
- झालावाड़ से झालरापाटन की ओर जाने वाली सड़क के बायीं ओर की एक पहाड़ी पर यह किला स्थित है। इस किले का निर्माण कार्य झाला राजा पृथ्वीसिंह ने सन् 1860 में प्रारम्भ कराया था। झालरापाटन का सूर्य मंदिर ___झालावाड़ जिला मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर स्थित है ‘झालरापाटन’ जिसे ‘झालरा पत्तन’ और ‘घण्टियों का शहर’ भी कहते हैं। चन्द्रभागा नदी के तटवर्ती क्षेत्र में बसे वर्तमान झालरापाटन का क्षेत्र उसकी पुरातन नगरी चंद्रावती में सम्मिलित रहा है। झालरापाटन के नाम से इस नये शहर को झाला जालिम सिंह (प्रथम) ने सम्वत् 1849 में बसाया था।
- झालरापाटन के मध्य स्थित भव्य एवं विशाल ‘सूर्य मंदिर’ भारत के गिने चुने सूर्य मंदिरों में से एक है जो दसवीं सदी का बताया जाता है। इस मंदिर को सात सहेलियों का मंदिर और पद्मनाभ मंदिर भी कहा जाता है । खजुराहो मंदिर शैली में बना यह विशाल मंदिर अपनी भव्यता और सुंदर कारीगरी के कारण मशहूर है।
शांतिनाथ जैन मंदिर
- सूर्य मंदिर के निकट ही ग्यारहवीं सदी का एक सुंदर शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर है। इस कलात्मक मंदिर के मूल गर्भगृह में भगवान शांतिनाथ की आदमकद मनमोहक प्रतिमा प्रतिष्ठापित है।
दारकाधीश का मंदिर
- झाला जालिम सिंह ने झालरापाटन की पुनर्स्थापना के साथ ही गामती सागर तालाब के किनारे, सघन वक्षों के मध्य श्री द्वारकाधीश के मंदिर का निर्माण करवाया।
चन्द्रावती
- झालरापाटन शहर के दक्षिण में पौराणिक नगरी चन्द्रावती के ध्वस्त अवशेष हैं। चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित इस वैभवशाली नगर का निर्माण मालवा के राजा चन्द्रसेन द्वारा कराया गया था। चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित शीतलेश्वर महादेव, काली देवी, शिव, विष्णु और वराह के मंदिर समह विशेष रूप से दर्शनीय हैं।
अतिशय क्षेत्र चांदखेड़ी
- यह राज्य का एक विरल अतिशय क्षेत्र है जहाँ आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर की रचना रहस्यमयी है। जिला मुख्यालय झालावाड़ से लगभग 35 किलोमीटर दूर खानपुर कस्बे में स्थित इस मंदिर के भूगर्भ में एक विशाल तल प्रकोष्ठ है जिसमें संवत् 512 की श्री आदिनाथ । भगवान की पद्मासन प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। ।
मनोहरथाना का किला
- परवन और काली खाड नदियों के संगम पर बना ‘मनोहरथाना का किला’ ऐतिहासिक एवं सामरिक महत्त्व का स्थल रहा है।
बौद्धकालीन कोलवी की गुफाएँ
- झालावाड़ के दक्षिण में स्थित डग पंचायत समिति क्षेत्र में कई स्थानों पर पत्थरों के विशाल खण्डों को काटकर बनाई गई गुफाएँ और स्तूप हैं। क्यासरा गाँव से पाँच किलोमीटर उत्तर-पश्चिम की ओर पहाड़ की चोटी पर 35 कोलवी गुफाएँ बनी हैं। आवर गाँव के पूर्व में भी पहाड़ी को काटकर बुद्ध की गुफाएँ बनाई गई हैं। पगारिया ग्राम के दक्षिण में हाथिया गौड़ पहाड़ी पर भी पाँच गुफाएँ हैं जिनकी छतें गोलाकार हैं। गुनाई नामक ग्राम के नजदीक दक्षिण दिशा में चार बौद्धकालीन गुफाएँ हैं, जो कोलवी और विनायक के समकालीन मानी गई हैं।
नागेश्वर पार्श्वनाथ
- राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा के पास चौमहला से लगभग नौ किलोमीटर दूर उन्हेल गाँव में नागेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ स्थल है।
डग
- कस्बे में कल्याण सागर तालाब है। यहाँ 12वीं शताब्दी के कळ मंदिर हैं। इनमें डगेश्वरी माता, रानी का मकबरा, काम वर्णेश्वर महादेव का मंदिर प्रमुख है।
गंगधार
- यहाँ पर डल सागर नामक तालाब है जिसकी सीमाओं पर 17वीं वान्टी की छतरियाँ है। नदी के किनारे पास में ही नगर में एक पराना किला भी है।
- बिन्दौरी झालावाड़ क्षेत्र का मुख्य लोक नृत्य है और सामान्यतः होली या विवाह उत्सव पर किया जाता है।
- जिले के विभिन्न क्षेत्रों में समय-समय पर अनेक मेलों का आयोजन होता है। कई क्षेत्रों में साप्ताहिक हाट भी लगते हैं। प्रमुख मेले हैं—चन्द्रभागा कार्तिक पशु मेला, वैशाख पूर्णिमा गोमती सागर पशुमेला, बसंत पंचमी मेला (भवानी मण्डी-अकलेरा) नवरात्रा उत्सव (चौमहला) तथा शिवरात्रि मेला (मनोहरथाना)।
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