जोधपुर जिले में पर्यटन स्थल
जिला-जोधपुर
जोधपुर नगर
- जोधपुर शहर की स्थापना रावनी गई। राव जोधा ने मंडोर की समझकर चिड़ियानाथजी की ट्रैक पर शहर की स्थापना राव जोधा द्वारा 12 मई, 1459 में की जोधा ने मंडोर को सामरिक दृष्टि से अनुपयुक्त एवं असुरक्षित त्यानाथजी की ट्रॅक पहाड़ी पर ज्येष्ठ सुदी 11, शनिवार 1459 को विशाल दुर्ग की नींव डालकर जोधपुर की स्थापना जोधा के समय जोधपुर भागीपोल, फुलेराव की पोल, भोमियों दीवाली पोल और सिंहपोल के रवाजों के भीतर बहत ही की। राव जोधा के समय जोधप की घाटी वाली पोल और छोटे-भू-भाग में समाया हुआ था।
मेहरानगढ़ दुर्ग
- दर्ग की नींव 12 मई, 1459 को राव रिडमल के पुत्र राव जोधा भ-तल से 400 फीट ऊँची चिड़ियानाथ की पहाडी पर डाली। इसे ‘मयरध्वज’ के नाम से भी जाना जाता है।
- पर्व दिशा में बना इसका भव्य प्रवेश द्वारा ‘जयपोल’ कहलाता है। इसका निर्माण सन् 1807 ई. में साहित्यिक अभिरुचि के धनी महाराजा मानसिंह ने करवाया था। फतेह पोल का निर्माण सन् 1707 ई. में महाराजा अजीत सिंह ने मुगलों को परास्त करने के बाद किले में प्रवेश करते हुए करवाया था। इनके अतिरिक्त दुर्ग में अमृतपोल, जोधा जी का फलसा, लौहपोल, सूरजपोल, खाण्डीपोल भी हैं। किले में कुछ महल भी बने हुए हैं जिनमें खंभों, दीवारों और छतों पर सोने के बारीक काम वाला ‘मोती महल’ और भित्ति चित्रों से सजा फूल महल कला की दृष्टि से उत्कृष्ट हैं। इनके अलावा शृंगार चौकी और चामुण्डा देवी का मंदिर दर्शनीय है।
जसवंत थड़ा (राजस्थान का ताजमहल)
- मेहरानगढ़ दुर्ग के निकट स्थित देवकुण्ड जलाशय के किनारे संगमरमर की इस नायाब इमारत का निर्माण जोधपुर नरेश जसवंत सिंह द्वितीय की स्मृति में महाराजा सरदार सिंह ने सन् 1906 में करवाया।
मण्डोर
- जोधपुर शहर से आठ किलोमीटर उत्तर में बसे मण्डोर का इतिहास बहुत पुराना है। बौद्ध शैली की बनावट के स्तम्भ और दरबार कक्ष के कुछ अवशेष यहाँ हैं। किसी जमाने में यहाँ माण्डव्य ऋषि की तपोभूमि था जिसकी वजह से इसका नाम माण्डव्यपुर था।
- इसक बड़े-बड़े बागों में जोधपर के शासकों के छतरीनमा स्मारक (देवल) हैं। मर्तियों से सजे तथा ऊँचे शिखरों से मण्डित ये स्मारक व छतरियाँ मारवाड के गौरव को दर्शाती हैं। यहाँ 33 करोड़ देवताओं की गद्दी (साल) भी दर्शनीय हैं।
पठान गुलाम कलंदर खां तथा गमता गाजी की मस्जिदें मुगल कालीन संस्कृति का परिचय देती हैं। श्रावण मास के अंतिम सप्ताह में मंडोर में मेला लगता है।
उम्मेद भवन
- यह प्रासाद एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है तथा छीतर पत्थर से बना होने के कारण इसका नाम ‘छीतर पैलेस’ रखा गया है। इस भव्य राजप्रसाद की नींव श्री उम्मेदसिंह, तत्कालीन शासक ने 18 नवम्बर, 1928 ई. में रखी तथा 1940 में यह बनकर पूर्ण हुआ। इसका निर्माण अकाल राहत कार्यों के तहत सम्पन्न हुआ।
बालसमंद एवं कायलाना
- शहर से करीब 6 किलोमीटर दूर मण्डोर मार्ग पर बालसमंद झील एवं उद्यान स्थित है। सन् 1159 ई. में परिहार शासक नाहर राव ने इसका निर्माण करवाया था। जोधपुर के पश्चिम में कायलाना झील का निर्माण सर प्रताप ने करवाया था। जोधपुर को पेयजल सुलभ कराने में इस प्राकृतिक झील का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके समीप उम्मेद सागर बाँध है जिसे स्व. उम्मेदसिंह महाराजा ने सन् 1933 ई. में बनवाया था।
शिकारपुरा
- जोधपुर शहर से 25 किलोमीटर दूर लूनी मार्ग पर स्थित शिकारपुरा ग्राम पर्यावरण प्रेमी समाज सुधारक कृष्णभक्त संत श्री राजाराम की तपोस्थली है जहाँ पर राजाराम आश्रम व राजाराम का मंदिर दर्शनीय स्थल है।
धवा
- जोधपुर से 45 किलोमीटर दूर इस वन्य जीव अभयारण्य में काफी बड़ी संख्या में भारतीय बारहसिंगा, हिरण आदि विचरण करते हए देखे जा सकते हैं।
ओसियां
- जोधपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर जोधपुर-फलौदी मार्ग पर ओसियां कस्बा महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है इस कस्बे में पत्थर की बसक खदाई पर पाँचवीं शताब्दी पूर्व की सभ्यता एवं संस्कृति की झलक मिलती है। यहाँ के प्राचीन देवालयों सच्चियाय माता का नि हरिहर के तीन मंदिर है जो उस युग की भारतीय वास्तकला एवं के दर्शन कराते हैं। यहाँ के जैन मंदिर, सूर्य मंदिर भी दर्शनीय है।
- इसके अलावा फलौदी में पार्श्वनाथ एवं ब्रह्माणी का मंदिर, लटियाल जी का मंदिर, कापरडा जैन मंदिर व बिलाड़ा का बाणगंगा मंदिर भी दर्शनीय हैं।
- फलौदी के पास खींचन ग्राम के निकट शीतकाल में कुरजां पक्षी बहुत बड़ी संख्या में आते हैं जिन्हें देखने के लिए देशी-विदेशी पर्यटक भी यहाँ पहुँचने लगे हैं।
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