जैसलमेर जिले में पर्यटन की द्ष्टि से महत्वपूर्ण दर्शनिक स्थल
जिला-जैसलमेर
जैसलमेर दुर्ग (सोनार का किला)
- राव जैसल भाटी द्वारा बसाया गया यह शहर नीची पर्वत श्रृंखलाओं के दक्षिणी छोर पर बसा हुआ है। नगर के दो प्रमुख प्रवेश द्वार हैं। गढ़सीसर दरवाजा (पूर्व में) तथा अमरसागर दरवाजा (पश्चिम में)। चूंकि यह किला और इसमें स्थित आवासीय भवन पीले पत्थरों से निर्मित हैं और सूर्य । का रोशनी में स्वर्णिम आभा बिखरते हैं इसलिये यह दुर्ग ‘सोनार किला’ के नाम से भी पुकारा जाता है।
- दुर्ग में अनेक वैष्णव मंदिरों के अलावा स्थापत्य एवं शिल्प कला के सजीव केन्द्र के रूप में जैन मंदिर बने हए हैं। लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर अपने सोने व चांदी के कपाटों के कारण विशेष महत्त्व रखता है। दुर्ग स्थित जैन मंदिरों के तहखानों में ‘जिनभद्र सूरि ज्ञान भण्डार’ बना हुआ है।
कलात्मक हवेलियाँ
- जैसलमेर नगर हवेलियों व झरोखों की नगरी के नाम से भी विख्यात है। यहाँ की पटवों की हवेलियाँ, सालिम सिंह की हवेली तथा नथमल की हवेली कलात्मकता की दृष्टि से बेमिसाल है।
गढ़सीसर जलाशय
- जैसलमेर शहर के प्रवेश मार्ग पर स्थित पवित्र गढ़सीसर सरोवर अपने कलात्मक प्रवेशद्वार (नगरवधू टीलों द्वारा निर्मित) तथा जलाशय के मध्य स्थित सुन्दर छतरियों व इसके किनारे बने बगीचों के कारण प्रसिद्ध है। इस कृत्रिम सरोवर का निर्माण रावल गढ़सी सिंह ने सन् 1340 में करवाया था।
बादल विकास व जवाहर विलास
- जैसलमेर के महारावलों के निवास हेतु बने जवाहर विलास तथा बादल विलास महल 19वीं शताब्दी की अद्भुत स्थापत्य कृतियों में से है।
अमर सागर
- जैसलमेर से लौद्रवा के मार्ग पर पाँच किलोमीटर दूर अमर सागर तालाब और उसके समीप उद्यान दर्शनीय है।
बड़ा बाग
- जैसलमेर से लगभग चार किलोमीटर दूर रामगढ़ रोड़ पर स्थित बड़ा बाग जैसलमेर के महारावलों के श्मशानों पर बने कलात्मक छतरीस्मारकों के लिए विख्यात है। यहाँ पर जैतसर सरोवर है।
सम के टीले
- जैसलमेर के पश्चिम में 42 किलोमीटर दूर थार मरुस्थल के विशाल रेतीले टीलों का क्षेत्र है। सम ग्राम के निकट स्थित इन रेतीले टीलों में ऊँट सफारी का आनंद तथा सूर्यास्त दर्शन का दृश्य पर्यटकों का मन मोह लेता है। सम की तरह जैसलमेर से 45 किलोमीटर दूर खुड़ी गाँव के निकट स्थित विशाल रेतीले टीले भी पर्यटकों की पसंद है।
लौद्रवा
- जैसलमेर से 16 किलोमीटर दूर स्थित प्राचीन स्थल लौद्रवा तत्कालीन जैसलमेर राज्य की राजधानी थी। लौद्रवा के भव्य चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर का निर्माण थारूशाह भंसाली ने कराया। कहा जाता है कि प्राचीन लौद्रवा युगल प्रेमी मूमल-महेन्द्रा का प्रणय स्थल था। शुष्क काक नदी के किनारे स्थित मूमल मेड़ी के नाम से इस प्रेमाख्यान की नायिका मूमल के महल के भग्नावशेष आज भी इस अमर प्रेम गाथा को प्रमाणित करते हैं।
तनोट
- जैसलमेर से लगभग 120 किलोमीटर दूर स्थित ‘तनोट’ को भूतपूर्व रियासत के शासकों की प्राचीनतम राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ रावल केहर का बनवाया हआ एक लघु दुर्ग है। यहा तनोट देवी का मंदिर है, जो जैसलमेर के भूतपूर्व भाटी शासकों की कुलदेवी मानी जाती है।
- इस देवी मंदिर में वर्तमान में सेना तथा सीमा सुरक्षा बल के जवान पूजा करते हैं, अतः यह सेना के जवानों की देवी’ के रूप में विख्यात है। इसे ‘थार की वैष्णो देवी’ भी कहते हैं। तनोट में देवी मंदिर के सामने भारत पाकिस्तान के 1965 के युद्ध में भारत की विजय का प्रतीक ‘विजय स्तम्भ’ भी स्थापित है।
पोकरण
- जैसलमेर से 110 किलोमीटर दूर जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर पोकरण प्रमुख शहर है। पोकरण में लाल पत्थरों से निर्मित सुंदर दुर्ग (बालागढ़) है। इसका निर्माण सन् 1550 में राव मालदेव ने कराया था। पोकरण में ही 14वीं शताब्दी में निर्मित बालीनाथ जी का मठ है। पोकरण के पास आशापूर्णा मंदिर, खींवज माता का मंदिर एवं कैलाश टेकरी दर्शनीय हैं।
रामदेवरा
- रामदेवरा’ (प्राचीननाम रूणेचा) जैसलमेर बीकानेर मार्ग पर जैसलमेर से लगभग 125 किलोमीटर व पोकरण से 13 किलोमीटर की दरी पर स्थित है। कहते हैं कि यहाँ का रामसर तालाब स्वयं रामदेवजी द्वारा निर्मित है। रामदेवरा में रामदेवजी की समाधि के चारों ओर एक विशाल मंदिर बना हुआ है जिसे बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी ने सन् 1931 में बनवाया था।