जयपुर जिले में पर्यटन स्थल
जिला-जयपुर
- ‘भारत का पेरिस’ और ‘गुलाबी नगर’ के नाम से प्रसिद्ध जयपुर’ नगर अपने बेजोड़ नगर नियोजन के लिए विश्वविख्यात है।
- कछवाहा वंश के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना 18 नवम्बर, 1727 को की गई थी। नगर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वितीय के मुख्य वास्तुकार और नगर नियोजक श्री विद्याधर भट्टाचार्य थे, जिनकी विशिष्ट स्थापत्य कला ने जयपुर को देश-विदेश में अद्वितीय स्थान दिलाया। महान शिल्पशास्त्री विद्याधर ने जयपुर शहर को 9 वर्गों के सिद्धान्त पर बसाया। वर्तमान में नगर के चारों ओर सात दरवाजे हैं जो ध्रुव पोल (जोरावर सिंह गेट), घाट गेट, न्यू गेट, सांगानेरी गेट, अजमेरी गेट, चांदपोल गेट और सूरजपोल गेट के नाम से जाने जाते हैं।
सिटी पैलेस
- पुराने नगर के बीचोंबीच स्थित यह राजसी निवास परम्परागत राजस्थानी व मुगल स्थापत्य कला का एक प्रभावशाली मिश्रण है। सिटी पैलेस में एक सुंदर ‘संग्रहालय’ है जहाँ राजस्थानी व भारतीय वस्त्रों एवं वेशभूषा के दुर्लभ नमूने प्रदर्शित किये गये हैं। उत्तर-पश्चिम में राजसी शान वाला सात मंजिला ‘चंद्रमहल’ है जिसके कक्ष रंगचित्रों, वनस्पति सजावट व कांच के काम की दीवारों तथा परम्परागत जयपुरी शैली की छत से भव्यतापूर्वक अलंकृत हैं।
गोविन्ददेव जी का मंदिर
- राजमहलों के जय निवास उद्यान में स्थित है सवाई जयसिंह का एक दिन का निवास स्थान जो कि देव आज्ञानुसार ‘गोविन्द देव जी’ के मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया था।
जंतर-मंतर (वेधशाला)
- चंद्रमहल के पूर्व में त्रिपोलिया प्रांगण में एक सर्वाधिक प्रसिद्ध व विस्तृत वेधशाला है जो ज्योतिष यंत्रालय या जंतर-मंतर के नाम से भी जानी जाती है। जंतर-मंतर का निर्माण जयपुर शहर की स्थापना से भी सन 1718 में खगोलज्ञ महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा करवाया या था। उनके द्वारा दिल्ली, मथुरा, उज्जैन, वाराणसी व जयपुर में नति पाँच वेधशालाओं में जयपुर की वेधशाला सबसे बड़ी व परिरक्षित है। इस वेधशाला में अनेक पाषाण यंत्र हैं जिनमें मुख हैं सम्राट यंत्र, जयप्रकाश यंत्र व राम यंत्र ।
हवामहल
- जयपुर की पहचान और शान है ‘हवामहल’ नगर के मध्य सिटी पैलेस परिसर में स्थित हवामहल जयपुर के सम्मोहन में चार चाँद लगाने वाले असाधारण भवनों में से एक है। इसका निर्माण महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने सन् 1779 ई. में करवाया था। इसमें पाँच मजिलें हैं। इस विश्वप्रसिद्ध खूबसूरत इमारत का निर्माण विशेषकर रानियों की सुविधा की दृष्टि से करवाया गया था ताकि वे त्योहारों एवं अन्य विशेष अवसरों पर सिरहड्योढ़ी बाजार से निकलने वाली महाराजा की सवारी एवं झांकियों का हवामहल के झरोखों से अवलोकन कर सकें।
रामबाग पैलेस
- जयपुर के सवाई रामसिंह द्वितीय ने रियासत में अतिविशिष्ट व सम्माननीय अतिथियों के ठहरने के लिए रामबाग पैलेस बनवाया था।
स्वर्गासूली (ईसरलाट)
- त्रिपोलिया बाजार के पश्चिम में स्थित इस गगनचुम्बी एवं संकरी मीनार का निर्माण महाराजा ईश्वर सिंह ने सन् 1749 विजय की स्मृति के रूप में करवाया था।
रामनिवास बाग
- जयपुर नगर के दक्षिण में स्थित इस सार्वजनिक उद्यान का निर्माण महाराजा सवाई रामसिंह ने सन् 1868 में करवाया था। रामनिवास बाग परिसर में सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रोत्साहन हेतु ‘रवीन्द्र रंगमंच’ का निर्माण करवाया गया जिसमें सभागार, कला दीर्घा व मुक्ताकाशी थियेटर हैं।
अलबर्ट हॉल संग्रहालय
- रामनिवास बाग के मध्य दक्षिण सीमा पर भारतीय व पारसी शैली में बनी इस भव्य इमारत का निर्माण सन 1876 ई. में करवाया गया था। वेल्स के राजकुमार अलबर्ट ने 6 फरवरी, 1876 को इसका शिलान्यास किया था। उन्हीं के नाम पर इस भवन का नाम अलबर्ट हॉल रखा गया।
मोती डूंगरी
- मोती डूंगरी वस्तुतः एक छोटी पहाडी है जिसके शिखर पर एक प्राचीन स्कॉटलैण्डी किले (स्कॉटिश केसल) के रूप में एक महल सवाई मानसिंह की तीसरी पत्नी महारानी गायत्री देवी ने बनवाया था। दूर से मोती की । भाँति दिखाई देने के कारण ही इसका नाम मोती डूंगरी पड़ा। इसकी तलहटी । में गणेश जी का एक सुप्रसिद्ध मंदिर है जहाँ गणेश चतुर्थी पर मेला लगता है।
नया विधानसभा भवन
- स्टेच्यू सर्किल से आगे सचिवालय भवन और उससे आगे लाल कोठी (ज्योति नगर) क्षेत्र में नवनिर्मित विधानसभा भवन का लोकार्पण तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने 6 नवम्बर, 2001 को किया। आठ मंजिले इस विशाल भवन के स्थापत्य में राजस्थान की परम्परागत शैलियों और स्थापत्य का मिश्रण देखा जा सकता है।
गेटोर
- नाहरगढ़ पहाड़ी के ठीक नीचे एक संकरे से दर्रे में बने हुए श्मशान जिन्हें ‘गेटोर की छतरियाँ’ कहते हैं।
जलमहल
- जयपुर से आमेर जाने वाले सड़क मार्ग पर मानसागर जलाशय मध्य खिलते कमल सा ‘जलमहल’ देखकर निगाहें तृप्त हो जाती है। महाराजा प्रतापसिंह द्वारा निर्मित यह महल अनूठे स्थापत्य शिल्प एवं सौंदर्य के कारण अलग ही आकर्षण पैदा करता है।
सिसोदिया रानी का महल व उद्यान
- जयपुर नगर के पूर्व में सुरम्य पहाड़ियों के मध्य निर्मित सिसोदिया रानी का महल और उद्यान मैसूर के वृंदावन गार्डन जैसे लगते हैं। ये महल और उद्यान सवाई जयसिंह (द्वितीय) की सिसोदिया रानी की स्मृति में बनवाये गये थे।
विद्याधर जी का बाग
- नगर से 7 किलोमीटर पूर्व में यह बगीचा ऊँची पहाड़ियों से घिरी हुई एक तंग घाटी में स्थित है।
गलता जी
- जयपुर नगर के पूर्वी द्वार सूरजपोल के बाहर कुछ दूर एक पहाड़ रे में स्थित गलता एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। जनश्रुति के अनुसार इस स्थान पर 1500 वर्ष पूर्व ‘गालव’ नामक ऋषि तपस्या किया करत थे और उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम गलता पड़ा। यहाँ एक पहाड़ पर ‘सूर्य मंदिर है जहाँ से जयपुर शहर का मनोहारी दृश्य दिखाई देता है।
आमेर
- जयपुर-दिल्ली सड़क मार्ग पर जयपुर के जोरावर सिंह गेट से लगभग 10 किलोमीटर दूर पूर्व जयपुर राज्य (ढूंढाड़) की प्राचीन राजधानी ‘आमेर’ काली खोह पहाड़ियों के दर्रे में स्थित है। प्राचीन काल में यह अम्बावती तथा अंबिकापुर के नाम से जाना जाता था। बारहवीं शताब्दी के मध्य से 18वीं शताब्दी तक आमेर कच्छवाहों की राजधानी रहा।
- आमेर के भव्य महलों में हिन्दू एवं पारसी निर्माण शैली का मिश्रण है। इन महलों का निर्माण राजा मानसिंह (प्रथम) ने 17वीं शताब्दी के आरम्भ में करवाया था और सवाई जयसिंह (द्वितीय) के शासनकाल तक इनका निर्माण चलता रहा। महल के मुख्य द्वार में घुसते ही राजपूत भवन शैली पर बना ‘दीवान-ए-आम’ है जो चारों ओर से लाल पत्थर के खंभों की दोहरी पंक्तियों युक्त बरामदों से घिरा है। राजप्रासादों के भीतरी भाग में जाने हेतु ‘गणेश पोल’ का निर्माण करवाया गया था। यह विशाल द्वार पाश्चात्य विद्वान फर्गसन की नजर में “संसार का सर्वोत्कृष्ट प्रवेश द्वार है।”
- दुर्ग प्रासाद का सबसे प्राचीन भाग ‘मानसिंह का जनाना महल’ भी देखने काबिल है। दुर्ग प्रासाद के भीतर ही ‘जलेब चौक’ है।
- आमेर नगर के अन्य दर्शनीय स्थलों में जगत शिरोमणी का मंदिर प्रमुख है। संगमरमर के इस विशाल एवं प्राचीन वैष्णव मंदिर के मुख्य कलात्मक प्रवेश द्वार पर दो हाथी द्वारपाल के रूप में निर्मित हैं। इसक अलावा यहाँ नरसिंह जी का मंदिर, संघी झूथाराम का मंदिर, कल्याण राय और अम्बिकेश्वर मंदिर व अकबर की मस्जिद भी दर्शनीय है।
नाहरगढ़
- जयपुर शहर के उत्तर में एक ऊँची पहाड़ी पर स्वर्ण मुकुट की भाँति दैदीप्यमान नाहरगढ़ दुर्ग का राज प्रासाद शहर की सुंदरता में चार चाँद लगाता है। नाहरगढ़ किले का प्रारम्भ में सन् 1734 में सवाई जयसिंह ने निर्माण कराया था, परन्तु इसको वर्तमान स्वरूप सन् 1868 में सवाई रामसिंह ने दिया।
जयगढ़
- आमेर के जयगढ़ किले का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह व सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने करवाया था। 18वीं शताब्दी में निर्मित यह दुर्ग सन् 1983 में आम जनता के लिए खोला गया। देश की सबसे बड़ी ‘जयबाण’ तोप यहाँ देखी जा सकती है।
सांगानेर
- जयपुर शहर से 12 किलोमीटर दूर टोंक रोड पर स्थित सांगानेर कस्बे में शाही महलों के खंडहर, जैन मंदिर, बुर्ज व द्वार हैं। इस कलापूर्ण नगर की स्थापना महाराजा पृथ्वीराज के तृतीय पुत्र सांगा बाबाजी ने की थी। सांगानेर हाथ से बनाये जाने वाले कागज और वस्त्र रंगाईछपाई के लिए भी प्रसिद्ध है।
सामोद
- जयपुर से 40 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बसे सामोद ग्राम के अंतिम छोर पर एक पहाड़ी की गोद में बने भव्य सामोद महल दर्शनीय हैं। वर्तमान में यह गाँव राजस्थान में ग्रामीण पर्यटन का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है।
बैराठ
- शाहपुरा-अलवर सड़क मार्ग पर जयपुर से 86 किलोमीटर दूर स्थित बैराठ का प्राचीन नाम विराट नगर है। यहाँ प्राचीन बौद्ध मंदिर के खंडहर
चाकसू
- परातन वैभव का प्रतीक चाकसू ढूंढाड़ अंचल का एक प्राचीन कस्बा है जो जयपुर से 40 किलोमीटर दक्षिण में जयपुर-कोटा राष्ट्रीय मार्ग पर स्थित है। यहाँ का प्राचीन सूर्य मंदिर, शीलगरी पर शीतला माता मंदिर तथा शिव डूंगरी दर्शनीय हैं।
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