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उदयपुर जिले में पर्यटन की द्ष्टि से महत्वपूर्ण दर्शनिक स्थल
जिला-उदयपुर
राजमहल (सिटी पैलेस)
- पिछोला झील के तट पर स्थित उदयपुर के राजमहल इतने सुंदर और भव्य हैं कि प्रसिद्ध इतिहासकार फर्ग्युसन ने इन्हें राजस्थान के विंडसर’ महलों की संज्ञा दी।
- राजमहल दो हिस्सों में विभाजित है। मर्दाना महल और जनाना महल। मर्दाना महल में शीश महल, कृष्ण महल, मदन विलास, काँच की बुर्ज, किशन विलास, मोती महल, भीम विलास, माणक महल आदि भवन हैं।
- जनाना महल में रंग महल, बादल महल व अन्य भव्य भवन हैं। इनमें भित्ति चित्र देखने काबिल हैं।
- राजमहल में ‘मयूर चौक’ का सौंदर्य अनूठा है। प्रताप कक्ष में महाराणा प्रताप का ऐतिहासिक भाला रखा है जिससे हल्दीघाटी के युद्ध में आमेर के कुँवर मानसिंह पर प्रताप ने वार किया था। राजकीय संग्रहालय
- भारत के विभिन्न प्रदेशों में पहने जानी वाली पगड़ियों व साफों के नमूने, प्राचीन सिक्के, मेवाड़ के महाराणाओं के चित्र, अस्त्र-शस्त्र व पोशाकों के संग्रह के साथ-साथ शहजादा खर्रम की वह ऐतिहासिक पगड़ी भी है जो मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा की दोस्ती में अदलाबदली की गई थी।
जगदीश मंदिर
- उदयपुर शहर का सर्वप्रमुख एवं प्राचीन ‘जगदीश मंदिर’ राजमहलों के प्रथम मुख्यद्वार बड़ी पोल से लगभग 200 मीटर पहले स्थित है। इसका निर्माण सन् 1651 में महाराणा जगतसिंह प्रथम द्वारा करवाया गया था।
पिछोला झील
- उदयपुर शहर की दो प्रमुख झीलों में से एक है पिछोला झील। कहते हैं कि इस झील को चौदहवीं शताब्दी में एक बणजारे द्वारा महाराणा लाखा के समय बनवाया गया था। शहर के पश्चिमी छोर पर स्थित पिछोला झील लगभग 5 किलोमीटर लम्बी व 1.6 किलोमीटर चौड़ी है।
- रंग सागर, स्वरूप सागर व दूध तलाई नामक सहायक झीलें पिछोला के सौंदर्य में अभिवृद्धि करती है। झील के मध्य दो छोटे-छोटे टापुओं पर ‘जग मंदिर’ व ‘जग निवास’ नामक जलमहल निर्मित हैं।
जगनिवास (लैक पैलेस)
- पिछोला झील के मध्य इस जगनिवास महल’ (लैक पैलेस होटल) का निर्माण महाराणा जगत सिंह द्वितीय ने सन् 1746 में करवाया था। प्राचीन महलों में संगमरमर का बना हुआ ‘धौला महल’ देखने योग्य है।
- महाराणा शंभसिंह तथा सज्जन सिंह ने अपने-अपने नाम स शम प्रकाश और सज्जन निवास महल बनवाये।
जग मंदिर
- पिछोला झील के बीच जगनिवास के समानान्तर ही एक दूसरे टापू पर बना है जग मंदिर महल। यह अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक महत्त्व के लिए भी प्रसिद्ध है। महल का निर्माण सन् 1615 में महाराणा अमर सिंह प्रथम ने प्रारम्भ किया तथा महाराणा करण सिंह ने सन् 1622 में इसे पूरा कराया।
- शाहजहा खुर्रम (शाहजहाँ) ने सन् 1622-24 में इसी महल में शरण ली थी, जब वह अपने पिता जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह कर भाग आया था।
फतेह सागर झील
- वर्तमान उदयपुर नगर के उत्तर-पश्चिम में चहुँदिश सुरम्य पर्वतमालाओं से घिरी फतेहसागर झील का निर्माण महाराणा फतेहसिंह ने करवाया था।
- फतेहसागर झील का निर्माण सर्वप्रथम सन् 1678 में महाराणा जयसिंह ने करवाया था, परन्तु एक बार की अतिवृष्टि ने इसे तहस-नहस कर दिया था। वैसे इस बाँध को ‘कनॉट बांध’ भी कहते थे क्योंकि इसका शिलान्यास तत्कालीन ‘ड्यूक ऑफ कनॉट’ ने किया था। एक नहर द्वारा फतेहसागर झील पिछोला झील से जुड़ी हुई है।
- झील के एक बड़े टापू पर ‘नेहरू पार्क’ बना हुआ है दूसरे टापू पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की ‘सौर वेधशाला’ स्थापित है।
सज्जनगढ़ महल
- फतेहसागर झील के पीछे एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर बनी सज्जनगढ़ महल जिसे ‘मानसून पैलेस’ भी कहते हैं, उदयपुर के गारवमयी इतिहास की याद ताजा करता-सा दिखाई पड़ता है। इस महल का महाराणा सज्जन सिंह ने बनवाना प्रारम्भ किया था जिसे बाद में महाराणा फतहसिंह ने पूरा करवाया था।
महाराणा प्रताप स्मारक
- फतेहसागर झील के किनारे स्थित मोती मगरी नामक पहाड़ी को महाराणा प्रताप स्मारक के रूप में विकसित किया गया है। उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदयसिंह उदयपुर नगर बसाने से पूर्व इसी पहाड़ी पर मोती महल बनवा रहे थे जिसके भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं। प्रताप स्मारक के निकट ही भीलू राजा की स्मृति स्वरूप प्रतिमा स्थापित की – गई है।
सहेलियों की बाड़ी
- सहेलियों की बाड़ी फतहसागर झील की पाल के नीचे हरे-भरे बाग-बगीचों के बीच है सहेलियों की बाड़ी, उदयपुर शहर का सुंदरतम उद्यान । महाराणा | संग्रामसिंह द्वितीय ने इसका निर्माण तथा महाराणा फतेहसिंह ने इसका | पुनर्निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि यहाँ राजकुमारियाँ अपनी सहेलियों के साथ मनोरंजन के लिए आती थीं। इसलिए इसे ‘सहेलियों की बाड़ी’ कहा जाता है।
सुखाड़िया सर्किल
- सहेलियों की बाड़ी के निकट ही रेलवे ट्रेनिंग स्कूल के समक्ष स्थित सुखाड़िया सर्किल के मध्य में निर्मित 42 फीट ऊँचा आकर्षक फव्वारा देश में अपने ढंग का एक ही है।
गुलाब बाग
- गुलाब बाग का दूसरा नाम है ‘सज्जन निवास बाग’। यह उद्यान नगर से लगता हुआ ही है। इसे महाराणा सज्जन सिंह ने बनवाया था अतः उन्हीं के नाम पर इसे सज्जन निवास बाग कहते हैं।
भारतीय लोक कला मंडल
- चेतक सर्किल से मीरा गर्ल्स कालेज की तरफ जाने वाले सड़क मार्ग पर स्थित भारतीय लोक कला मण्डल देश-विदेश में अपने नाट्य-नृत्य एवं कठपुतली प्रदर्शनों से विशिष्ट ख्याति अर्जित कर चुका है। लोक कलाविद् पद्मश्री स्व. देवीलाल सामर के प्रयासों से स्थापित इस संस्थान के संग्रहालय में विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों, आभूषणों तथा पोशाकों का संग्रह है।
शिल्पग्राम
- कला, शिल्प, संगीत, नृत्य और संस्कृति प्रेमियों के विशेष आकर्षण का केन्द्र है ‘शिल्प ग्राम’ । फतहसागर झील के उस पार पहाड़ी परिवेश में पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर द्वारा वर्ष 1989 के दौरान शिल्पग्राम का सृजन किया गया।
आयड़
- उदयपुर स्टेशन से कुछ ही दूरी पर आयड़ नामक प्राचीन ग्राम है। यह ग्राम कई बार उजड़ा और बसा है। यहीं पर उदयपुर के महाराणाओं के स्मारक बने हुए हैं। स्मारकों के पास बने ‘गंगा | कुण्ड’ का बड़ा धार्मिक महत्त्व है।
यहाँ के अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थलों में बागोर की हवेली, गणगौर घाट, स्वरूप सागर, बड़ी का तालाब (10 किलोमीटर) उदयसागर झील (13 किलोमीटर) आदि हैं।
जयसमंद झील –
- उदयपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रृंखला की सुरम्य घाटियों में विश्व की मानव निर्मित विशालतम झीलों में से एक जयसमंद झील की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है। स्थानीय लोग इसको ‘ढेबर’ भी कहते हैं।
- इस झील का बाँध महाराणा जयसिंह ने सन् 1685 में बनवाया था। झील के बांध पर 6 सुंदर छतरियाँ बनी हुई हैं। समीप ही पहाड़ियों पर स्थित हवामहल तथा रूठी रानी के महल भी दर्शनीय हैं। ऋषभदेव (केसरिया जी)
- उदयपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में उदयपुरअहमदाबाद मार्ग पर ‘धूलेव’ नामक कस्बे में ऋषभ देव जी का प्रसिद्ध जैन मंदिर है। यहाँ की मूर्ति पर केसर बहुत चढ़ाई जाती है