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टोंक जिले में पर्यटन की द्ष्टि से महत्वपूर्ण दर्शनिक स्थल
जिला-टोंक
भूमगढ़ (टोंक)
- 17वीं शताब्दी में भोला नामक ब्राह्मण ने अपनी भौम की रक्षा एवं प्रशासन की दृष्टि से भूमगढ़ का निर्माण कराया जिसे नवाब अमीर खाँ ने पूरा कराया। इसे अमीरगढ़ किला भी कहा जाता है। इस किले के समीप खुदाई में जैन तीर्थंकरों की पाषाण निर्मित अति प्राचीन 26 सुंदर प्रतिमाएँ मिलती हैं।
सुनहरी कोठी
- टोंक बड़ा कुआं के पास नजर बाग में रत्न, काँच एवं सोने की झाल देकर बनाई गई सुनहरी कोठी अवस्थित है। पूर्व में यह शीशमहल के नाम से जानी जाती थी।
अरबी एवं फारसी शोध संस्थान
- साहित्य प्रेमियों की तीर्थ-स्थली ‘अरबी एवं फारसी शोध संस्थान’ की विधिवत स्थापना टोंक शहर में 4 दिसम्बर, 1978 को की गई। इससे पूर्व सरकार द्वारा वर्ष 1961 में टोंक जिला मुख्यालय पर प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर का एक कार्यालय अरबी एवं फारसी भाषाओं पर शोध तथा उनके उन्नयन के लिए स्थापित किया गया था। नवाब मोहम्मद अली खाँ ने विशेषकर मिश्र एवं भारत के विभिन्न स्थानों से अनेक ग्रंथ एकत्रित किये।
डिग्गी कल्याण जी (श्री जी)
- टोंक जिले के धार्मिक स्थलों में डिग्गी श्री कल्याण जी का स्थान प्रमुख है। मुख्य मेला प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ला एकादशी को लगता है।
राजमहल
- बनास नदी के किनारे देवली शहर से 12 किलोमीटर दूर एक प्राचीन ऐतिहासिक ग्राम राजमहल है। यहाँ सोलंकी राजपूतों का बनाया हुआ एक प्राचीन दुर्ग है।
माण्डकला
- देवली पंचायत समिति क्षेत्र के इस गाँव में एक छोटे तालाब का ‘पुष्कर’ के समान धार्मिक महत्त्व है। इसके चारों ओर 16 मंदिर हैं। यह स्थल माण्डव ऋषि की तपोस्थली रही है। माण्डकला के पास टीलों में दबा प्राचीन कस्बा ‘नगर’ है जिसके प्राचीन महलों में विक्रम संवत् पूर्व की तीसरी शताब्दी के शिलालेख एवं सिक्के मिले हैं जिन पर ‘मालवंत जय’ और ‘जय मालव गणराज्य’ मुद्रित है।
काकोड़ का किला एवं हाथी भाटा
- टोंक जिला मुख्यालय से सवाई माधोपुर सड़क पर 22 किलोमीटर दूर ककोड़ का गगन चुंबी किला ऊँचे पहाड़ पर स्थित है। इसके पांच किलोमीटर पूर्व दिशा में गुमानपुरा गाँव में एक चट्टान को उत्कीर्ण कर हाथी बनाया गया है। यह पाषाण हाथी ‘हाथी भाटा’ के नाम से प्रसिद्ध हैं।
टोडारायसिंह
- टोडारायसिंह टोंक जिले का तहसील मुख्यालय है जो टोंक से 72 किलोमीटर दूर है। यहाँ एक गुफा है जो ‘पीपाजी की गुफा’ कहलाती है। यह उस पहाड़ी के ढलान पर स्थित है जहाँ गागरोन के राव पीपा अपने अंतिम दिन बिताये थे। यहाँ पहाड़ी पर स्थित लल्ला पठान का किला, हाड़ी रानी का कुण्ड तथा सन् 1659 और 1661 में बनी दो प्रसिद्ध बावड़ियाँ भी दर्शनीय हैं।